नज़र के सामने है पर नज़र में आ नहीं सकता
ये राज़-ए-हक़ बिना मुरशद कोई दिखला नहीं सकता
ये रहबर वक्त का हम से फ़क़त किरदार मांगे है
यूं बातों से तो परचम ज्ञान का लहरा नहीं सकता
यक़ीनन मुब्तला होगा किसी वहम-ओ-भरम में वो
वगरना ज्ञान लेकर कोइ ठोकर खा नहीं सकता
हो जिसका सारथी मुरशद फिर उस रथ को ज़रा सा भी
हवा तो क्या कोई तूफ़ान भी सरका नहीं सकता
फँसे हिर्स-ओ-हवस में जो नहीं ये जानते ,मुरशद
सुकून-ए-दिल तेरे दीदार के बिन आ नहीं सकता
अगर ये बख़्श देता है ग़नीमत जानिए वरना
कहीं पर भी मुरीद अपने गुनाह धुलवा नहीं सकता
मेरी तक़दीर में कुछ भी नहीं था हीर , मुरशद ने
नवाज़ा इस क़दर मुझको ये दिल बतला नहीं सकता!
मनधीर ” हीर “